भूमि, लक्ष्मी और कृपा जैसे तीन नाम किसी कन्या के प्रतीक हो सकते हैं, लेकिन यहाँ पर यह तीनों शब्द मिलकर जिनशासन की जय-जयकार कर रहे हैं। इस आर्टिकल और वीडियो में हम दिखाएंगे कि कैसे इन तीन शब्दों ने मिलकर मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर सूरत के पास एक भव्य जैन तीर्थ का निर्माण किया।
इस ब्लॉग में आप श्री लब्धि-विक्रम-राजयशसूरीश्वरजी जैन महातीर्थ (सूरत-बालेश्वर) का दर्शन करेंगे और जानेंगे उसका अद्भुत इतिहास लेकिन उससे पहले में आपको बताना चाहूँगा की में वहां कैसे पहुंचा.
श्री लब्धि-विक्रम-राजयशसूरीश्वरजी जैन महातीर्थ: सूरत-बलेश्वर
कुछदिन पहले की बात है. नेशनल हाइवे ४८ पर कार से हमारी यात्रा की शुरुआत मुंबई से हुई थी। परिवार के कुछ सदस्य मेरे साथ थे, और जैसे-जैसे हम अहमदाबाद की ओर बढ़ रहे थे, रास्ते में मौसम भी बदलने लगा। जब हम वापी पहुंचे, शाम हो चुकी थी और अचानक से मूसलधार बारिश शुरू हो गई। आसमान में कड़कड़ाती बिजली की गूंज माहौल को थोड़ा डरावना बना रही थी। रास्ते में ट्रैफिक जाम होने का भी डर था. नवसारी पहुँचने से पहले ही रात हो गई थी.
ऐसे में हमने अपने जीजाजी, श्री अमिष राम्भिया, से संपर्क किया। उन्हें सूरत के पास स्थित जैन तीर्थ के बारे में जानकारी थी। हमने उनसे गूगल लोकेशन मंगवाई ताकि बारिश और ट्रैफिक की स्थिति में रात के समय ड्राइविंग करने के बजाय हम उस जैन तीर्थ में रुक सकें। सूरत से पहले ही श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का जिनालय है, जहाँ धर्मशाला, भोजनशाला और अन्य सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध थीं।जैन समाज के लिए यह स्थान एक अद्भुत व्यवस्था के साथ बना हुआ है, जहाँ भक्तिभाव के साथ आनंद लेने का अवसर मिलता है।
इस घटना ने हमें इस बात का स्मरण दिला दिया की “जीवन में जब भी तूफ़ान आएं और दुःख की आंधी हमें डराए, तब परमात्मा की शरण ही हमें सच्ची शांति और सांत्वना प्रदान करती है। भवसागर को पार करने के लिए परमात्मा की भक्ति ही एकमात्र उपाय है।“
यह वीडियो श्री लब्धि-विक्रम-राजयशसूरीश्वरजी जैन महातीर्थ की कहानी और इसके निर्माण के अद्वितीय योगदानकर्ताओं को समर्पित है, जिन्होंने अपने धर्म-भाव और समर्पण से इस तीर्थ को साकार किया।
सूरत के पास जैन तीर्थ का इतिहास और भव्य निर्माण
आप जब भी मुंबई से अहमदाबाद हाइवे पर यात्रा करें, तो इस रास्ते पर सूरत के पास, 30 की. मी. के अंतर पर बलेश्वर में श्री शंखेश्वरम् महातीर्थ है, जो जैन समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण स्थान है। यह तीर्थयात्रा करने वालों के लिए एक विश्रामस्थली से बढ़कर, भक्तिभाव और आत्मशांति का एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है।
आइए दोस्तों इस तीर्थ के इतिहास के बारे में कुछ जानते है.
भगवान भक्ति है. शक्ति दो
एक छोटा बच्चा अपनी माँ से एक रुपया लेता है… हठीसिंह की वाडी के जिनालय में जाता है। प्रभु के दर्शन करते समय प्रार्थना करता है की हे “प्रभु! मैं भी ऐसा ही जिनालय बनाना चाहता हूं।” थोड़ा बड़ा हो गया. एक दिन एक दाता के बारे में पढ़ा. परमात्मा से प्रार्थना करता है, “मैं भी प्रतिदिन एक लाख दान करना चाहता हूँ। भगवान भक्ति है. शक्ति दो:’ ये भावुक बच्चा जिसका नाम है राजेशभाई कामदार.
विक्रम संवत 2044 की बात है। मुंबई के वालकेश्वर स्थित श्री सुपार्श्वनाथ मंदिर में पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय राजयशसूरीश्वरजी म.सा. और पूज्य साध्वीजी वाचंयमाश्रीजी म.सा. (बेन महाराज साहेब) का राजेशभाई ने दर्शन-वंदन किया। उन्होंने अत्यंत नम्रता से विनती की, “मैं सूरत जा रहा हूं, वहाँ व्यापार के उद्देश्य से रहूंगा। लेकिन मेरे मन में कई धार्मिक भावनाएँ हैं। कृपया आप मुझे आशीर्वाद दें कि मेरी धार्मिक इच्छाएँ पूर्ण हों।”
भूमि के भाग खुल गए
इसके बाद, राजेशभाई ने सूरत में प्रभु की प्रतिष्ठा करवाई। वहाँ भव्य धार्मिक आयोजन और मनोरथ हो रहे थे। अहमदाबाद में शांतिनगर सोसाइटी के विक्रम-तीर्थ में उन्होंने पुनः पूज्य बेन म.सा. से बिनती की, “सूरत राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 8 पर चल्थान के विस्तार में मेरी अठारह हजार वार (18,000) 1,62,000 वर्ग फुट जमीन है।
पानी मीठा है, उपजाऊ मिट्टी है। कृपया इस भूमि को स्वीकार करें और यहाँ एक महान तीर्थ का निर्माण करें।” राजेशभाई ने अपनी भावनाओं को इस प्रकार पूज्य गुरुदेव के सामने रखा। छह महीने तक विचार-विमर्श और चर्चा होती रही, लेकिन किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सके।
फिर पूज्य गुरुदेव अहमदाबाद (प्रेरणा तीर्थ) गोडीजी चातुर्मास के लिए पधार रहे थे। उनका पावन चरण उस भूमि पर पड़ा इस महत्वपूर्ण अवसर पर, श्री राजेशभाई कामदार, उनकी धर्मपत्नी दर्शनाबेन, सुपुत्र ऋषभ, और सुपुत्री हिलोनी ने विनम्र भाव से एक पत्र पूज्य गुरुदेव के करकमलों में समर्पित किया, जिसमें उन्होंने अपनी धार्मिक भावनाओं और तीर्थ निर्माण की इच्छा को व्यक्त किया था।
सूरत के पास जैन तीर्थ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय: श्री शंखेश्वरम् महातीर्थ
उस में लिखा था ‘श्री लब्धि-विक्रम-राजयशसूरीश्वरजी जैन तीर्थ के लिए इस पवित्र भूमि को समर्पित करते है।’
जापान में मिली पुण्य लक्ष्मी – भारत में बनी धर्म लक्ष्मी
जैन तीर्थ के लिए भूमि प्राप्त तो हो गई, लेकिन जिनालय बनवाने का सौभाग्य सरकार दंपत्ति मेनकाबेन नीतीशभाई सरकार को प्राप्त हुआ। उनकी भी एक विशेष कहानी है।
सूरत के श्री नीतीशभाई लक्ष्मीचंद सरकार और उनकी धर्मपत्नी मेनकाबेन अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई गए, और फिर वहां से जापान चले गए। पुण्य, चतुराई, ईमानदारी, कठोर परिश्रम और धार्मिक संस्कारों की वजह से वे पुण्य लक्ष्मी की प्राप्ति में सफल हुए। दोनों ने जापान में भी कड़ी मेहनत की और धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा, पूजा, व्रत, नियम, तप और त्याग का भी पालन किया।
उन्होंने अपने तीन बेटे मनीष, निमेश, और मुनेश, बहुएं शिवानी, नेहल, और सोनाली, और पोतियाँ क्रिशा, ईशा, खुशी, करीना, जश्वी, सरीना, और सनाया को भी धर्म संस्कार और शास्त्र ज्ञान दिया। जापान में रहते हुए भी वे नियमित सामायिक, प्रभु पूजा और पर्व आराधना करते रहे। उन्होंने भरूच से जापान लाये गए श्री महावीरस्वामी प्रभु के जिनालय की ध्वजा फहराई। भरूच में स्थित शक्तिनाथ उपाश्रय का भी लाभ लिया।
इसके उद्घाटन के अवसर पर गुरुदेव श्री राजयशसूरीश्वरजी म.सा. के सत्संग का लाभ लिया और कल्याण मित्र अशोकभाई झवेरी के साथ सूरत की उस विशाल तीर्थ भूमि का निरीक्षण किया। इस भूमि के मालिक राजेशभाई और दर्शनाबेन कामदार से संपर्क किया गया। भूमि के सौंदर्य को देखते हुए दंपत्ति ने मन में जिनालय की कल्पना की और मंगल मनोरथ जाग उठा। कुछ समय बाद, अशोकभाई झवेरी जापान गए और जिनालय के निर्माण को लेकर मेनकाबेन और नीतीशभाई से चर्चा की। पूज्य बेन महाराज साहब के साथ संपर्क स्थापित हुआ और इस शुभ कामना को प्रकट किया गया।
आखिरकार, पूज्य गुरुदेव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने जिनालय के खनन और शिलान्यास का मुहूर्त निर्धारित किया। पूज्य साध्वीजी रत्नचूलाश्रीजी म.सा. और पू. साध्वी वाचंयमाश्रीजी म.सा. (बेन म.सा.) की निश्रा में, विक्रम संवत 2062, पोष वद 8, सोमवार को शिलान्यास संपन्न हुआ।
सरकार दंपत्ति ने अपनी संपत्ति से भव्य-दिव्य श्री शंखेश्वर पार्श्व प्रभु के जिनालय में श्री आदिनाथ, श्री शांतिनाथ, श्री मुनिसुव्रतस्वामी, श्री संभवनाथ, श्री महावीरस्वामी, श्री सीमंधरस्वामी, श्री गौतमस्वामी, और श्री पुंडरीकस्वामी की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई। गगनचुंबी शिखर पर कलशासेहन और ध्वजा फहराई गई।
इस प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक दिन विक्रम संवत 2064, पोष सुद 3, दिनांक 11-1-2008, शुक्रवार था। श्री सिद्धाचल गिरिराज की गोद में जम्बूद्वीप के परिसर में एक सौ आठ (108) फीट ऊंची विशाल आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा स्थापित कर सरकार दंपत्ति ने एक उज्ज्वल इतिहास रच दिया।
इसके बाद विक्रम संवत 2072, पोष सुद 3, मंगलवार, दिनांक 12-1-2016 को नौवें ध्वजारोहण और भव्य प्रवेशद्वार का उद्घाटन किया गया। इस मौके पर दंपत्ति ने अपने जीवनकाल में एक और महोत्सव संपन्न किया। इस महान कार्य के लिए पुनः पुनः अनुमोदना!
देव-गुरु कृपा
पूज्य दादा गुरुदेव की अद्वितीय लब्धि और पू. गुरुदेव विक्रम के अपूर्व पुण्य के साथ, पूज्य गुरुदेव के महान प्रभाव और वासक्षेप से जिनशासन का यश चारों दिशाओं में फैल गया। इसी पुण्य प्रभाव के अंतर्गत, इस तीर्थ का निर्माण उदार दानदाताओं और धार्मिक पुण्यात्माओं के सहयोग से सफल हुआ।
सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी के अत्यंत प्रभावशाली शंखेश्वर तीर्थ पेढ़ी के साथ-साथ नेल्लोर, बेंगलुरु, सांताक्रूज़, और प्लेज़ेंट पैलेस संघों के सहयोग से भव्य नृत्य-मंडप का निर्माण किया गया। शासन देवीकी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई, और तीर्थ में भव्य उपाश्रय, सुंदर व्याख्यान कक्ष, पूज्य साध्वीजी म.सा. के दो विशाल उपाश्रय, अपूर्व धर्मशाला, सुंदर भोजनशाला, आयम्बिल खातु, विशाल पटांगन, और बाल क्रिडांगन जैसे आकर्षक स्थल निर्मित हुए।
इस अद्भुत वातावरण ने तीर्थ को एक विशेष महत्त्व और आभा दी, जिससे चारों ओर धार्मिक चेतना और भक्ति की गूंज उठी, और इस तीर्थ ने एक नई पहचान प्राप्त की।
सूरत के पास जैन तीर्थ: श्री लब्धि-विक्रम राजयशसूरीश्वरजी तीर्थ की विशेषताएं
- प्रतिदिन 108 मंत्रों से वासक्षप पूजा
- प्रतिदिन प्रातः विविध वाजिंत्र-शंखनाद से महाअभिषेक करें
- प्रतिदिन प्रातः स्नात्रपूजा एवं शशन्दजजा
- प्रत्येक शनिवार, रविवार, प्रत्येक पूनम और बस्ता माह की शाम को संगीतकारों के साथ संध्या भक्ति
- हर पूनम सुबह अष्टप्रकारी पूजा विधिकर – संगीतकार के साथ
- प्रत्येक दसवें दिन भगवान श्री पार्श्वनाथ का शक्रस्तव एवं रथयात्रा सहित महाअभिषेक
- हर साल पोष दशमी को अथम्मा तीर्थ में मनाया जाता है।
- कार्तिक पूनम और चैत्री पूनम गिरिराज श्री शत्रुंजय पट्टदर्शन और भाथ द्वारा व्यवस्थित।
- आसो माह और चैत्र माह की शाश्वती नवपदजी ओली की जाती है।
- आयम्बिल – एकासना के तीर्थयात्रियों से भक्ति की पेशकश की जाती है।
- हर साल महा अनुष्ठान
- श्री घंटाकर्ण का हवन – काली चौदस
- श्री महालक्ष्मी पूजन-धनतेरस
- श्री मणिभद्रवीर हवन – असो सुद पंचम
- तीर्थयात्रियों की सुबह 9-30 से 11-30 तक और दोपहर 2-30 से 4-30 तक भाता भक्ति।
- जैन धर्म प्रतियां – पुस्तकें – किताबों की लाइब्रेरी
- भोजनशाला में RO जल व्यवस्था।
- प्रत्येक पर्युषण महापर्व पर श्री महावीर जन्म वाचन दिवस पर सुपन दर्शन मनाया जाता है।
- हर साल, पौष सुद दशम, जन्मदिन के अवसर पर, अठारह अभिषेक – सत्तरभेदी पूजा और तीर्थ को रोशनी और सजावट से सजाया जाता है।
श्री शंखेश्वरम महातीर्थ, श्री लब्धि-विक्रम राजयशसूरीश्वरजी जैन तीर्थ का पता और मोबाइल नंबर इस प्रकार है.
श्री लब्धि-विक्रम राजयशसूरीश्वरजी जैन तीर्थ नेशनल हाइवे नं. 48, अवध सांग्रिला के सामने, मु. बलेश्वर, तालुका पलसाना, जिल्ला सूरत, पिन: 394305. मोबाइल नंबर: 9054972120