गुजरात का एक छोटा-सा गाँव धारिसना, जो गांधीनगर से लगभग 30 किलोमीटर और महुडी जैन तीर्थ से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यह गाँव जमीन में खुदाई के दौरान जैन प्रतिमाओं के मिलने की घटनाओ के लिए प्रसिद्ध हो गया है। धारिसना की भूमि में प्राचीन जैन स्थापत्य और जैन प्रतिमाएँ बार-बार मिलने से यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
धरिसाना गाँव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कहते हैं, प्राचीन काल में धारिसना गाँव को धारा नगरी के नाम से जाना जाता था, हालाकि आज से 50 साल पहले तक इस गाँव में बड़ी संख्या में जैन लोग निवास करते थे। इस गाँव में आज भी एक जैन मंदिर और जैन आवासीय क्षेत्र है। पुराने जमाने में गाँव के जैनियों का जीवन व्यापार, वाणिज्य, देव दर्शन, पूजा-पाठ और महोत्सवों से भरपूर था। गाँव के लोग एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध रखते थे और जैन समाज का विशेष सम्मान होता था।
व्यापार और उद्योग ज्यादातर जैन समुदाय के लोगों के नियंत्रण में थे। गाँव के मुख्य बाजार में जैनियों की दुकानें प्रमुख स्थान पर होती थीं, जो गाँव के आर्थिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं।
प्राथमिक विद्यालय के प्रांगण में खुदाई के दौरान जैन प्रतिमाएँ मिलीं
19 दिसंबर 2022 को, धारिसना गाँव के एक प्राथमिक विद्यालय के नवीनीकरण के लिए खुदाई के दौरान तीन खंडित जैन प्रतिमाएँ मिलीं। ऐसी घटनाएं पहले भी इस गाँव में हो चुकी हैं। लगभग 15-20 साल पहले, इसी गाँव में खुदाई के दौरान पाँच जैन स्थापत्य मूर्तियाँ मिली थीं।
यहाँ जमीन से प्रगट होती है रहस्यमय प्राचीन जैन प्रतिमाएँ
मैं बाहर निकलना चाहता हूं और आप मुझे दबा रहे हैं
180 साल पहले की एक चमत्कारी घटना बताते हुए जैन मंदिर के पुजारी रमेशभाई बारोटने मुझे कहा की मेरे पिताजी धारिसाना के बरोटवाड़ा में एक नया मकान बना रहे थे तब उस मकान की एक दीवार दिन को बनाते थे और रात को गिर जाती थी. ऐसा लगातार कुछ दिन तक चलते रहा. रात को दीवार अपने आप ढह जाती थी. दिन में फिर उसे बनाना शुरू करते थे. इस दौरान एक दिन रात को मेरी फूफा (पिताजी की बहन) को स्वप्न आया. स्वप्न में भगवान ने बताया कि “मैं बाहर निकलना चाहता हूं और आप मुझे दबा रहे हैं.”
दूसरे दिन सुबह में फूफा ने स्वप्न में आई हुई बात मेरे पिताजी से कहीं. स्वप्न की बात सुनते ही मेरे पिताजी ने ताबड़तोड़ काम रुकवा दिया और उन्होंने जिस जगह पर वे दीवार बना रहे थे वहां पर खुदाई का काम शुरू करवाया. खुदाई के दौरान कुछ ही फिट की गहराई से एक के बाद एक आठ जैन अनमोल प्रतिमाएं स्वयं प्रकट हुई. आज यह सभी प्रतिमाए धारिसना गाँव के जिनालय में पूजी जाती है।
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स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस मकान को भगवान पूर्ण नहीं होने देते और इसे फिर से बनाने की कोशिशें असफल होती हैं। मैने जब इस घर की मुलाक़ात ली और इस घर का कोना-कोना मेरे कमरे में कैद किया तब यकीन मानिए मुझे यहां पर मंदिर जैसी शांति का अनुभव हुआ था।
उस घर के बाहर मैंने देखा की 180 साल पुराना यह मकान वैसा ही खड़ा है जब की उसकी दोनों तरफ पक्के नए मकान बन चुके हैं. अब देखना यह है कि यह 180 साल पुराना मकान जब गिरेगा या इसको तोड़ा जाएगा तब इसके नीचे से खुदाई के दरमियान क्या मिलता है.
इस घटना के ठीक 156 साल बाद संवत 2050 की मागशर सुद चतुर्थी दिनांक 6 दिसंबर 1994 के दिन यहां धारिसाना में बारोटवाड़ा के आगे कुछ दुकान बन रही थी तब उस दुकान की नींव में से 7 प्रतिमाजी अखंड रूप से प्राप्त हुई, प्रकट हुई।
धारिसना में मुझे गाइड करने वाले भाई ने रास्ते में मुझे बताया की यहाँ दूकान की नींव से प्रगट हुई अखंड जैन प्रतिमाजी में से तीन पालीताणा में दी हुई है और तीन प्रतिमा अंधेरी मुंबई में दी गई है. वहां जिनालय में उसकी पूजा सेवा होती है. मुझे गाइड करने वाले स्थानीय का कहना था कि यहां से जो प्रतिमाजी प्राप्त हुई थी उनमें से एक के नीचे धारा नगर लिखा था।
धारिसना के ग्रामीणों का मानना है कि यहाँ की भूमि के नीचे एक प्राचीन नगर दफन है। इसलिए अगर राज्य पुरातत्व विभाग यहाँ खुदाई का काम शुरू करता है, तो अवश्य ही महत्वपूर्ण प्राचीन अवशेष और धरोहरें सामने आ सकती हैं। इससे न केवल जैन धर्म की प्राचीन गाथा सामने आएगी, बल्कि हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी पता चलेगा।
जैन और बौद्ध प्रतिमाओं के बीच भ्रम
आज भी देश के कई हिस्सों में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों और बौद्ध प्रतिमाओं के बीच अंतर को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। अक्सर जैन प्रतिमाओं को बौद्ध प्रतिमा समझ लिया जाता है। यह भ्रम सोशल मीडिया और अन्य स्थानों पर भी देखने को मिलता है। धारिसना गाँव में भी जैन प्रतिमाओं की पहचान को लेकर इस प्रकार का भ्रम देखा गया है।
प्रतिमाओं का संरक्षण और विसर्जन
धारिसना गाँव में जब भी खंडित जैन प्रतिमाएँ मिलती हैं, तो यहाँ का जैन समाज उन्हें भावनगर के पास घोघा के समुद्र में विसर्जित कर देता है। यह प्रक्रिया, अनजाने में ही सही, एक अपराध है। गाँव के अग्रणीओं को चाहिए कि पुरातत्व विभाग को इन प्रतिमाओं के बारे में जानकारी दे और इसे किसी संग्रहालय में संरक्षित किया जाए, ताकि ये ऐतिहासिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके।
संक्षेप में
धारिसना गाँव में मिली जैन प्रतिमाएँ न केवल जैन धर्म की प्राचीनता का प्रमाण हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि किस प्रकार हमारी संस्कृति और धरोहरें समय के साथ दब जाती हैं। इन अवशेषों को संरक्षित करने और पुरातत्व विभाग को सौंपने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इनका अध्ययन किया जा सके और हमारी विरासत की जानकारी मिल सके।