हस्तलिपि Manuscript विषय पर हम शायद अधिक जानकारी नहीं रखते और न ही हमारी इसमें कोई विशेष रुचि रही है। मगर जिस तेज़ी से तकनीक और दुनिया आगे बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से अकस्मात अवरोध या विनाश का खतरा भी संभव है। इस दौड़ और रफ्तार को काबू में रखकर हमें अपने जीवन के मुख्य उद्देश्यों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। यह मूल्यवान ज्ञान हमारी प्राचीन परंपराओं से मिलता है, जो अनादि काल से एक समान गति से हमें सही मार्ग दिखाती आई हैं। तो आइए, इस अमूल्य धरोहर को जानने और समझने का प्रयास करें।
आज की दुनिया में मानवता और जीव प्रजातियों के अस्तित्व पर निरंतर संकट मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं, प्रदूषण, और संसाधनों की अंधाधुंध खपत ने इस संकट को और गंभीर बना दिया है। ऐसे में हमें अपने इतिहास से सीखे गए जीवंत ज्ञान और परंपराओं की ओर लौटने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत में हजारों सालों से यह ज्ञान परंपरा मानवता के कल्याण और संकटों से बचाने का काम करती आई है।
भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा
भारत का इतिहास और संस्कृति अद्वितीय और समृद्ध रही है। यह भूमि विश्वभर में अपने ज्ञान, शिक्षा, दर्शन, और विज्ञान के लिए प्रसिद्ध रही है। 12वीं सदी में विदेशी आक्रमण से पहले भारत गणित, चिकित्सा, यंत्र विज्ञान, इंजीनियरिंग के साथ-साथ अध्यात्म और दर्शन में अग्रणी था। भारत के बिहार में नालंदा, गांधार में तक्षशिला, और गुजरात के वलभी जैसे प्रसिद्ध विद्यापीठें इसका प्रमाण हैं। इन विद्यापीठों में विश्वभर से हजारों विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे, जहां उन्हें मौखिक शिक्षा दी जाती थी और ज्ञान को स्मरण कर पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित किया जाता था।
ज्ञान की हस्तलिपियों का महत्व और विनाश
भारत की शिक्षा व्यवस्था में हस्तलिपियों का बहुत बड़ा योगदान था। ताड़पत्र, भोजपत्र और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर लिखी गईं ये हस्तलिपियाँ अमूल्य ज्ञान का खजाना थीं। इन लिपियों में प्राचीन विज्ञान, धर्म, दर्शन, और समाज की गहन जानकारी संग्रहित थी। परंतु, विदेशी आक्रमणों, कुदरती आपदाओं, और समाज के उदासीन रवैये के कारण ये अमूल्य धरोहर धीरे-धीरे नष्ट होती चली गईं।
प्रोफेसर डेविड पिंग्री जैसे विद्वान और डॉ. डोमिनिक वुजास्तिक जैसे इतिहासकार बताते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग तीन करोड़ से अधिक हस्तलिपियों का अस्तित्व हो सकता है, जिनमें से 20% जैन संघों के ग्रंथभंडारों में सुरक्षित हैं। हालांकि, पिछले 100 वर्षों में हर सप्ताह 100 से अधिक हस्तलिपियों का नाश हो रहा है। भारत में 150 साल पहले पांच करोड़ से अधिक हस्तलिपियां थीं, परंतु आज यह संख्या घटकर सिर्फ डेढ़ करोड़ रह गई है। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है।
हस्तलिपियों की मौजूदा स्थिति
अधिकतर हस्तलिपियां गांवों में अलमारियों में बंद पड़ी हैं, जहां उनका देखभाल नहीं हो रहा है। नमी, कीड़ों, दीमक और समय के साथ उनके पन्ने चिपक जाते हैं, जिससे वे नष्ट हो जाती हैं। इन दुर्लभ पांडुलिपियों को सुरक्षित रखने के लिए ना तो पर्याप्त संसाधन हैं और ना ही समाज में इसके प्रति जागरूकता। इन पांडुलिपियों का नाश न केवल प्राचीन ज्ञान का विनाश है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को खोने का भी संकेत है।
हस्तलिपि Manuscript
यह एक कड़वी सच्चाई है कि कई हस्तलिपियों को कबाड़ की तरह बेच दिया जाता है। ज्ञान की यह धरोहर, जो हजारों सालों की मेहनत और बुद्धिजीवियों के प्रयासों से संकलित हुई थी, आज हमारे ही सामने नष्ट हो रही है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने पूर्वजों के बलिदान का आदर कर रहे हैं? क्या हम इस अमूल्य धरोहर की रक्षा के लिए कुछ कर रहे हैं?
ज्ञान की सुरक्षा के लिए वर्तमान प्रयास
कुछ समर्पित विद्वान और संस्थाएं इस संकट को समझते हुए हस्तलिपियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए प्रयासरत हैं। पूज्य आचार्य श्रीमद विजय रामचंद्रसुरीश्वरजी महाराजा के शिष्य पूज्य गुरुदेव श्रुतरत्न गणिवर श्री वैराग्यरति विजयजी महाराज साहेब ने हस्तलिपियों के संरक्षण का भागीरथ काम हाथ लिया। उनके प्रयासों से 2010 में पुणे में श्रुतभवन संशोधन केंद्र की स्थापना हुई, और 2018 में श्रुतदीप रिसर्च फाउंडेशन का गठन किया गया, जिसके माध्यम से इन लिपियों के संरक्षण और संवर्धन के काम को व्यापक रूप दिया गया।
इस अभियान के तहत पांच प्रमुख लक्ष्य तय किए गए हैं:
- संरक्षण: अधिक से अधिक हस्तलिपियों का डिजिटलीकरण करके उनका ज्ञान संरक्षित करना।
- सूचीकरण: वर्तमान जैन हस्तलिपियों की प्राथमिक सूची तैयार करना।
- संपादन: हस्तलिपियों में निहित शास्त्रों का समीक्षात्मक संपादन करना।
- शिक्षा: संपादन कार्य के लिए नए विद्वानों को तैयार करना।
- संवर्धन: ताड़पत्र और भोजपत्र जैसे दीर्घकालिक साधनों पर पुनर्लेखन करके ज्ञान को लंबे समय तक सुरक्षित रखना।
समाज की भूमिका
यह सत्य है कि सरकारें और संस्थाएं अपने स्तर पर कुछ प्रयास कर रही हैं, लेकिन यह जिम्मेदारी केवल उनकी नहीं होनी चाहिए। समाज के हर व्यक्ति को इस ज्ञान धरोहर की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने पूर्वजों की इस अमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखने में योगदान दें। हम केवल यह सोचकर नहीं बैठ सकते कि “हम क्या कर सकते हैं?”।
हस्तलिपियों के विनाश को रोकने और उनके संरक्षण के लिए हमें संगठित प्रयास करने होंगे। इसके लिए:
- लोगों में जागरूकता फैलाना,
- विशेषज्ञों को इस क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रोत्साहित करना,
- सरकार और सामाजिक संगठनों का सहयोग करना अत्यावश्यक है।
निष्कर्ष
हमारी प्राचीन हस्तलिपियों में संग्रहित ज्ञान केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की धरोहर है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित करें ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इससे लाभान्वित हो सकें। आज यह निर्णय हमें करना है कि हम अपने इतिहास और ज्ञान को बचाने के लिए क्या कर सकते हैं। यदि हम अब भी चुप रहे, तो यह अनमोल धरोहर सदा के लिए खो जाएगी।