श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की अद्भुत कथा

श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। मान्यता है कि यह प्रतिमा अषाढ़ी नामक श्रावक ने 84,000 वर्ष पहले बनवाई थी। इस पवित्र प्रतिमा से जुड़ी एक रोचक और प्रेरणादायक कथा है, जो भगवान पार्श्वनाथ की महिमा को और उजागर करती है।
श्रीकृष्ण और जरासंध का युद्ध

महाभारत काल में, श्रीकृष्ण और जरासंध के मध्य घोर युद्ध हुआ। इस युद्ध में जरासंध ने “ज़रा” नामक विद्या का उपयोग किया, जिससे श्रीकृष्ण की सेना अचेत हो गई। पूरी सेना बेहोश होकर रणभूमि में गिर पड़ी, और स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई।
अरिष्टनेमि का सुझाव

इस संकट की घड़ी में, श्रीकृष्ण के चचेरे भाई अरिष्टनेमि (जिन्हें नेमिनाथ भगवान भी कहा जाता है) ने एक उपाय सुझाया। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा, “बंधु, विजय प्राप्त करने के लिए आपको देवी पद्मावती से वह पवित्र प्रतिमा प्राप्त करनी होगी, जिसे दामोदर स्वामी के कहने पर अषाढ़ी श्रावक ने स्थापित किया था।”
पार्श्वनाथ भगवान की आराधना

अरिष्टनेमि के सुझाव पर, श्रीकृष्ण ने देवी पद्मावती से उस दिव्य प्रतिमा को प्राप्त किया। रणभूमि में, उन्होंने अठ्ठम तप की आराधना की और भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रक्षाल पूजा (अभिषेक) संपन्न की। पूजा के बाद, उस पवित्र जल को उन्होंने अपनी सेना पर छिड़का। इसके प्रभाव से उनकी अचेत सेना तत्काल उठ खड़ी हुई और पुनः युद्ध के लिए सक्षम हो गई।
विजय का प्रतीक
श्रीकृष्ण की सेना ने न केवल जरासंध की विद्या को परास्त किया, बल्कि इस युद्ध में विजयी होकर भगवान पार्श्वनाथ की अनंत महिमा को सिद्ध किया।
श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का इतिहास चमत्कारों और आस्था की कहानियों से भरा हुआ है। उनकी पवित्र प्रतिमा के साथ जुड़ी घटनाएं न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि समाज की सामूहिक एकता, भक्ति और साहस का प्रतीक भी हैं।
शंखपुर

पहली घटना हमें उस समय में ले जाती है जब श्री कृष्ण महाराजा ने भगवान पार्श्वनाथ की चमत्कारी प्रतिमा से अपनी सेना को पुनर्जीवित कर जरासंध के विरुद्ध युद्ध में विजय प्राप्त की। इस घटना ने न केवल भगवान पार्श्वनाथ की दिव्यता को सिद्ध किया, बल्कि इस क्षेत्र को “शंखपुर” नाम देने का आधार भी बना, जो बाद में “शंखेश्वर” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
दूसरी घटना हमें मध्यकाल में ले जाती है, जब विधर्मी शासकों ने मंदिरों को नष्ट करने का प्रयास किया। तब जैन समाज के श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था और वीरता के साथ भगवान की प्रतिमा को विध्वंस से बचाया और उसे झंड कुएं में छिपाया। वर्षों तक प्रतिमा उसी कुएं में सुरक्षित रही, और बाद में इसे पुनः प्रकट कर भव्य जिनालय में स्थापित किया गया।
इन दोनों घटनाओं के बीच, एक अटूट कड़ी है – भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा की दिव्यता और उनके प्रति भक्तों की गहरी भक्ति। चाहे श्रीकृष्ण महाराज का युग हो या विधर्मियों के आक्रमण का समय, हर युग में इस पवित्र प्रतिमा ने अपनी चमत्कारी शक्ति से धर्म और सत्य की विजय सुनिश्चित की।

आज शंखेश्वर तीर्थ, इन दोनों ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटनाओं का केंद्र बनकर, श्रद्धालुओं के लिए आस्था और प्रेरणा का स्त्रोत है। यह स्थान हमें न केवल भगवान पार्श्वनाथ के प्रति समर्पण की शिक्षा देता है, बल्कि हमारे धर्म और इतिहास की रक्षा के लिए सतर्क और निष्ठावान रहने की प्रेरणा भी प्रदान करता है।
चमत्कारी झंड कुआं और प्रतिमा की सुरक्षा

मुगल आक्रमण के समय जब श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा को लूटने का प्रयास हुआ, तब जैन समाज ने अपनी धार्मिक धरोहर को बचाने के लिए अतुलनीय साहस दिखाया। श्रावक को शासन देवी के सपने में निर्देश मिलना और प्रतिमा को कुएं में छिपाने का निर्णय, भगवान की कृपा और उनके प्रति भक्तों की गहरी भक्ति को दर्शाता है।
कुआं गायब होने और प्रतिमा के सुरक्षित रहने की घटना एक अद्भुत चमत्कार है। वर्षों तक भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा इस झंड कुएं में सुरक्षित रही, और इसके पुनर्प्राप्ति के बाद एक नए मंदिर का निर्माण हुआ।
शंखेश्वर का नामकरण
श्री कृष्ण महाराजा द्वारा पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति को रणभूमि में लाकर पूजा करना और अपनी सेना को जीवित करने का प्रसंग अत्यंत प्रेरणादायक है। यह मूर्ति जहां स्थापित की गई, वह स्थान शंखपुर कहलाया, जो बाद में शंखेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वर्तमान मंदिर और धार्मिक महत्व
वर्तमान में शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जो भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित झंड कुआं भी अपने पौराणिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान न केवल ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि जैन धर्म की आध्यात्मिक शक्ति का प्रमाण भी है। कुएं के जल को पवित्र मानकर माथे पर लगाना भक्तों के लिए सौभाग्य और आशीर्वाद का प्रतीक है।
उपासना और धर्म का संदेश

श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की पूजा, जप, और ध्यान करने से भक्तों को अद्भुत आध्यात्मिक शांति और उनके आशीर्वाद की अनुभूति होती है। यह कथा यह सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म, तप, और भक्ति का सहारा लेकर जीवन की हर चुनौती को पार किया जा सकता है।
श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की जय!