Friday, November 22, 2024
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Brahmi Lipi ब्राह्मी लिपि का उद्भव और विकास

भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में ब्राह्मी लिपि एक अनमोल रत्न के रूप में जानी जाती है। यह लिपि भारतीय सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली लिपियों की जननी मानी जाती है। इसका सबसे पुराना ज्ञात साक्ष्य कर्नाटक के ब्रह्मगिरि में मिला है, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है।

ब्राह्मी लिपि-Brahmi Lipi-Brahmagiri Ashokan minor rock edict
Journeys across Karnataka

Brahmi Lipi ब्राह्मी लिपि का ऐतिहासिक विकास

यह लेखन शैली सिर्फ भारत तक सीमित नहीं थी। दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में भी इसे कई भाषाओं के लेखन में उपयोग किया गया। शिलालेख, ताम्रपत्र और धार्मिक ग्रंथों के संरक्षण के लिए इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतीय इतिहास को संरक्षित करने में इस लिपि ने एक अमूल्य भूमिका निभाई है।

Brahmi Lipi ब्राह्मी लिपि के प्रारंभिक साक्ष्य

ब्राह्मी लिपि के प्रारंभिक साक्ष्य सम्राट अशोक के शिलालेखों में मिलते हैं। हालांकि, सोहगौरा और पिपरहवा से प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि यह लिपि अशोक के समय से पहले भी प्रचलित थी। यह लिपि सामाजिक, धार्मिक और प्रशासनिक संदेशों के प्रसार का प्रमुख माध्यम थी।

Piprahwa Stupa
By SM7 – Own work, CC BY-SA 4.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=132522857

सिन्धु लिपि और ब्राह्मी लिपि का संबंध

ब्राह्मी लिपि के विकास को अक्सर सिन्धु घाटी सभ्यता से जोड़ा जाता है। सिन्धु सभ्यता के पुरातात्विक अवशेषों से लेखन प्रणाली और सामाजिक संगठन की जटिलता के प्रमाण मिलते हैं। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि ब्राह्मी लिपि सीधे सिन्धु लिपि से विकसित हुई, परंतु दोनों सभ्यताओं में लेखन के महत्व से उनका सांस्कृतिक संबंध देखा जा सकता है।

Mohenjodaro

Saqib Qayyum, CC BY-SA 3.0, via Wikimedia Commons

जैन धर्म और ब्राह्मी लिपि

जैन धर्म ने ब्राह्मी लिपि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैन ग्रंथों में उल्लेख है कि आदितीर्थंकर ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को अक्षर, चित्रकला और संगीत का ज्ञान प्रदान किया। यही कारण है कि ब्राह्मी लिपि का नाम उनके नाम पर पड़ा। जैन धर्म में भाषा और लिपि का महत्व सभी वर्गों के लिए बराबर था, जिससे यह लिपि व्यापक रूप से उपयोग में लाई गई।

ब्राह्मी लिपि का वैश्विक प्रसार

ब्राह्मी लिपि केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में भी व्यापक रूप से प्रचलित रही। श्रीलंका की सिंहल लिपि, थाईलैंड की थाई लिपि और कंबोडिया की खमेर लिपि ब्राह्मी से विकसित लिपियों के प्रमुख उदाहरण हैं। इन लिपियों ने स्थानीय भाषाओं के विकास और सांस्कृतिक साहित्य के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

ब्राह्मी लिपि-Brahmi Lipi

Brahmi Lipi ब्राह्मी लिपि के प्रभाव से भारतीय उपमहाद्वीप में देवनागरी, गुरुमुखी, बंगाली, गुजराती, और कन्नड़ जैसी कई लिपियों का विकास हुआ। इन लिपियों का उपयोग आज भी आधुनिक भाषाओं के लेखन में किया जाता है, और यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने में सहायक हैं।

अशोककालीन शिलालेख और ब्राह्मी लिपि

Ashokan Rock (Edicts)

सम्राट अशोक ने अपने धर्म और प्रशासनिक संदेशों को ब्राह्मी लिपि के माध्यम से प्रसारित किया। उनके शिलालेख, मुख्य रूप से ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे, जिससे धम्म (धर्म) का प्रचार-प्रसार हुआ। यह लिपि उनके शासनकाल के दौरान आम जनता तक संदेश पहुंचाने का एक प्रभावी साधन बनी।

लिपि का भारतीय समाज पर प्रभाव

इसके प्रभाव से कई महत्वपूर्ण लिपियाँ विकसित हुईं, जिनमें गुप्त, नागरी, शारदा (कश्मीरी), बंगला, तेलुगु-कन्नड़, और ग्रंथ शामिल हैं। इन लिपियों ने भारतीय उपमहाद्वीप की विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के विकास में योगदान दिया।

जैन धर्म में शिक्षा और समावेशिता

जैन धर्म ने शिक्षा में समावेशी दृष्टिकोण अपनाया। जहाँ जाति-भेद का कोई स्थान नहीं था। भगवान महावीर ने आर्य और अनार्य, सभी को समान रूप से धर्मोपदेश दिए। जैन श्रमण परंपरा में लिपि और भाषा का अध्ययन सबके लिए खुला था।

श्रुतपञ्चमी

Hemchandrachary

जैन आचार्य हेमचंद्र ने अपने ग्रंथों में उल्लेख किया है कि ऋषभदेव ने ब्राह्मी लिपि के माध्यम से अक्षर की शिक्षा दी थी। इसके अलावा, जैन धर्म में लिपि का धार्मिक महत्व भी देखा जाता है। श्रुतपञ्चमी का पर्व, जहाँ जैन शास्त्रों की पूजा होती है, यह इस लिपि के महत्व को दर्शाता है।

उपसंहार

ब्राह्मी लिपि भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह केवल एक लेखन प्रणाली नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास, संस्कृति और धर्म के विकास का प्रतीक है। इसके माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखा गया है, और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया गया है। इस प्राचीन लेखन प्रणाली का अध्ययन भारतीय इतिहास और संस्कृति को समझने के लिए आवश्यक है, और यह भारतीय सभ्यता के कई अनछुए पहलुओं से हमें परिचित कराती है।

 

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